Wednesday, August 23, 2017

दिल से नहीं, डंडे से मानते हैं अफसर!

प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया बसंत प्रताप सिंह से लेकर राजस्व महकमे के छोटे और बड़े अफसर आजकल राजस्व मामलों की पेंडेंसी दूर करने में जुटे हुए हैं। आलम यह है कि मुख्य सचिव को भी जिलों में लंबित मामलों को निपटाने के निर्देश देने के लिए मंत्रालय के बाहर निकल कर संभागीय बैठकें लेनी पड़ रही हैं। सवाल यह है कि बंटवारे और नामांतरण के मामले निपटाने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? कहीं राजस्व संबंधी मामले पेंडिंग मिलने पर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गर्जना तो इसका कारण नहीं? यदि ऐसा है तो क्या वाकई इतने छोटे मामलों में इस बार अफसर नपेंगे? या फिर केंद्र सरकार की तर्ज पर काम न करने वालों को अनिवार्य सेवानिवृत्त देने की धमकी ने उत्प्रेरक की भूमिका अदा की।

रेवेन्यू से जुड़े मामलों में अचानक परवान चढ़ी सक्रियता की वजह भरपूर सहायता और सुविधाओं के दावे के बीच अचानक उपजा किसान आंदोलन है। इसकी आंच झेल चुकी सरकार ने किसान और गांव वालों को खुश करने के जो उपाय तलाशे हैं उनमें एक उपाय राजस्व संबंधी मामलों का निराकरण भी है। लेकिन यह सक्रियता प्रदेश सरकार, उसके कामकाज के तरीके और पूरी अफसरशाही को कटघरें में खड़ा करती है। यदि मुख्यमंत्री धमकी नहीं देते तो क्या हजारों-लाखों बंटवारे और नामांतरण के अविवादित मामले और कई साल तक लटके रहते? क्या कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी, तहसीलदार और नायब तहसीलदार अपने कार्यक्षेत्र के ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं कर रहे थे, या फिर उनकी रूचि इन प्रकरणों में नहीं है, अथवा सरकार के दीगर कामों के बीच उन्हें इनके लिए समय ही नहीं मिल रहा? क्या हर मंगलवार को सभी दफ्तरों में होने वाली जनसुनवाई महज रस्मी हो गई है, जिनमें किसान और आम आदमी अपने इन्हीं प्रकरणों के निराकरण नहीं होने की शिकायत लेकर आता है। मुख्यमंत्री के जनशिकायत निवारण के फोरम समाधान ऑनलाइन और सीएम हेल्पलाइन भी इसके लिए कारगर साबित नहीं हो रहे! और तो और हर महीने मुख्य सचिव द्वारा की जाने वाली ‘परख’ वीडियो कान्फ्रेंस एवं इसके इतर होने वाली जिलों की समीक्षाएं भी बेकार साबित हो रही हैं।

आम जनता के दुःख दर्द दूर करने और सुशासन देने के तमाम उपायों के बावजूद मुख्यमंत्री को भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रम में राजस्व कोर्ट के लंबित मामलों को लेकर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की बात कहने की जरूरत अगर पड़ी है तो साफ है पूरे सिस्टम में कम-से-कम इस मामले में तो खोट है। ऐसा नहीं होता तो मुख्य सचिव को क्यों सिर्फ राजस्व प्रकरणों को लेकर संभाग-संभाग भटकना पड़ता। नहीं तो, बड़े-बड़े मामलों पर ‘वीसी’ मंत्रालय के आरामदेह वीडियो कान्फ्रेंसिंग कक्ष से ही कर ली जाती है। चीफ सेक्रेटरी संभागों के लिए निकले भी तब जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें इसके निर्देश दिए, अन्यथा निजाम जैसा चलता है वैसा ही चलता रहता (खुद मुख्यमंत्री ने एक से अधिक मौकों पर मुख्य सचिव को संभागों में जाकर राजस्व मामलों पर बैठक करने के निर्देश देने की जानकारी दी है)। मुख्यमंत्री को इसके बाद भी भरोसा नहीं था, इसीलिये विभाग में प्रमुख सचिव और सचिव होने के बावजूद अपने सचिव हरिरंजन राव को दूसरे राजस्व सचिव की भी जिम्मेदारी देकर ब्यूरोक्रेसी को चौंका दिया। पार्टी बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने अपनी पहली रेडियो वार्ता ‘दिल से’ में तीन माह बाद अविवादित नामांतरण और बंटवारे का प्रकरण बताने वालों को ईनाम देने की घोषणा भी कर दी। यानी सीएम के रडार पर अब राजस्व कोर्ट के मामले प्रमुखता से हैं।

लेकिन सवाल फिर वही है कि प्रशासनिक अफसरों को क्यों बार-बार उनके काम की याद मुख्यमंत्री को दिलानी पड़ती है। यदि चीफ मिनिस्टर न बोलें तो प्रशासन अपना काम नहीं करेगा? सीएम के इन निर्देशों से यही इंगित होता है। लगातार सत्ता के 14 साल पूरे कर रहे बीजेपी राज पर आरोप भी यही लगते हैं कि सरकार अफसर चला रहे हैं। इस आवरण को तोड़ने का जतन गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री ऐसी सख्ती दिखा कर करते हैं। फिलहाल तीन माह की डेडलाइन बीतने के बाद ही पता चलेगा कि असलियत क्या है, लेकिन इस बीच राजस्व विभाग के अफसर दावा कर रहे हैं कि तीन माह में पुरानी पेंडेंसी खत्म कर दी जाएगी। यह और बात है कि जिलों में तैनात अफसरों में उल्टा टांगने वाले बयान को लेकर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं है।

समाधान में मिलेगी सजा !

मुख्यमंत्री ने समाधान ऑनलाइन में अब जनशिकायतों के साथ ही लोकसेवा गारंटी और सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों संबंधी शिकायतें सुनने का भी फैसला किया है। अफसरों में राजस्व संबंधी मामलों को हड़बड़ी में निपटाने की एक वजह यह भी है। समाधान ऑनलाइन वो फोरम है जहां वीडियो कान्फ्रेंसिंग में शिकायतकर्ता की मौजूदगी में काम न करने वाले अफसरों को सफाई पेश करनी होती है। इस समीक्षा में अब तक एक आईएएस, एक आईएफएस समेत दर्जनों अफसरों को निलंबन की सजा मिल चुकी है।

मंत्री भी तो नहीं सुनते....

मुख्यमंत्री के निर्देश अफसर नहीं मानते हैं, यह आरोप अपनी जगह। लेकिन, प्रदेश के मंत्री भी मुख्यमंत्री के निर्देश और सलाह नहीं मानते। तभी तो हर चौथी कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री को मंत्रियों को प्रभार के जिले में जाने, गांव में रात गुजारने, समीक्षा करने जैसे निर्देश देने पड़ते हैं। हालिया कैबिनेट बैठक में भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दौरे के हवाले से ये निर्देश दिये गए। यह अलग बात है कि एक मंत्री ने प्रभार के जिलों में खुद के जाने का हवाला देकर बार-बार इस सलाह के औचित्य पर ही सवाल उठा दिये थे।

Wednesday, August 16, 2017

शाह को शाही सुरमा...!

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गुरुवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण हो रहा है। अंत्योदय का सूत्र देने वाले दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष में भाजपा संगठन को गति देने के महान उद्देश्य से आ रहे हैं भाजपाध्यक्ष। तीन दिन के उनके इस प्रवास में कई बैठकें होंगी। पार्टी के अलग-अलग स्तर की बैठकें लेंगे अमित शाह। 43 नगरीय निकाय के नतीजों के आईने में हो रहे इस दौरे को लेकर भाजपा में व्यापक तैयारियां की गयी हैं। इतनी व्यापक कि अध्यक्ष भी भौचक्के रह जाएं।
फिजूलखर्ची रोकने का संदेश देने नियमित विमान सेवा से आ रहे अमित शाह अधिकृत दौरे से एक रात पहले भोपाल पहुंच जाएंगे। राजशाही दौर की तर्ज पर उन्हें शहर के एक छोर पर बने वीआईपी गेस्ट हाउस में पहली रात बितानी होगी। अगले दिन शोभायात्रा (जुलूस) के साथ नगर प्रवेश होगा। साधारण कार्यकर्ता की तरह वे भाजपा प्रदेश कार्यालय दीनदयाल परिसर में ही बाकी दिन निवास करेंगे। उनकी रिहाईश के लिए कार्यालय के उस कक्ष को सजाया संवारा गया है,जहां कभी पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे रहा करते थे। सिर्फ एक कक्ष की बात नहीं है कार्यालय समेत उसके आवासीय कमरों को किसी तीन सितारा होटल की तर्ज पर संवार दिया गया है। इन कमरों में शाह के साथ आने वाले सहयोगी सिर्फ 3 दिन रुकेंगे। सारा तामझाम शाह की आंखों में 'सब कुछ बेहतर होने' का सुरमा लगाने का प्रयास जैसा है।
रही बात साज संवार की तो मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी को इस काम मे महारत हासिल है। फिर चाहे शाह के प्रवास से एक दिन पहले आये नगरीय निकाय के नतीजे हों। जिसका जश्न भाजपा मना रही है तो कांग्रेस भी जश्न में डूबी हुई है। नतीजों को देखने का चश्मा जो दोनों का अलग अलग है। कांग्रेस की खुशी इन 43 निकायों में 9 से 15 पर पहुंचने की है तो भाजपा 43 में से 25 पर जीत को लेकर खुशी का इजहार कर रही है। ये और बात है कि भाजपा अपनी पुरानी स्थिति कायम रखने में असफल साबित हुई। पार्टी के कुछ लोग हिसाब तो उन निकायों के भी लगा रहे जहां जीत की गारंटी माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार किया और नतीजा कांग्रेस के पक्ष में गया। अमित शाह की बैठकों में इस पर सवाल होने के कयास भाजपा के नेता लगाने लगे हैं। तभी तो कांग्रेस नेता कमलनाथ भी इसी बात को हवा दे रहे हैं।कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है, शिवराज जहाँ -जहाँ प्रचार के लिये गये, वहां आधी से ज़्यादा सीटें भाजपा हारी...ख़ुद उनके क्षेत्र में भाजपा हारी...शिवराज के पतन की शुरुआत..। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को भी भाजपा का जीत जश्न नहीं पच रहा। यादव ने कहा है कि दोगुनी सीटें तो कांग्रेस जीती है। फिर जश्न भाजपा कैसे मना रही! लेकिन इन छोटे चुनाव की जीत-हार पर रार क्यों? क्योंकि ये किसान आंदोलन के बाद हुए पहले चुनाव हैं। क्योंकि ये निकाय चुनाव आदिवासी बेल्ट में अगले विधानसभा इलेक्शन का लिटमस टेस्ट हैं। क्योंकि ये चुनाव प्रदेश भाजपा को नख-शिख परखने आ रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रवास से ठीक पहले हुए हैं।
किसान आंदोलन, ट्राइबल विधानसभा क्षेत्रों में निकली नर्मदा सेवा यात्रा और उनके परिणाम और प्रतिफल की बात तो अमित शाह करेंगे ही? सवाल ये भी हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी तथा मध्यप्रदेश में घर-घर तक पैठ के बावजूद क्यों कार्यकर्ता और नेता किसानों की नाराजगी को समय पर भांप नहीं पाये थे? सरकारी खुफिया तंत्र फेल सही, कार्यकर्त्ता तंत्र तो जीवंत इकाई है! या फिर बैठक, भोजन और विश्राम की परंपरा वाले दल में अब चर्चा एवं बैठक का स्थान नहीं रहा? क्या कार्यकर्ता और गांव-कस्बे के नेता सच बोलने से बचते हैं? अमित शाह इन सवालों के जवाब तलाशेंगे ही। लेकिन इस सबसे निपटने की भी तैयारी कर ली गयी है। शाह के लिये बैठकों का सिलसिला बना लिया गया है। तीन साल में जो विभाग, प्रकल्प गठित नही किये गये थे। आनन फानन में बन गये। बैठकें भी हो गयी इनकी। क्या पदाधिकारी और क्या मंत्री सभी भाजपा का संविधान और पंचनिष्ठा रट रहे हैं। पता नहीं किससे क्या पूछ लें शाह! मंत्रियों की तो अजीब हालत हो गयी है। सभी ने प्रभार के जिलों के दौरे कर डाले। वो भी हो आये जिले में, जो मुख्यमंत्री के बार-बार कहने पर भी नहीं जाते थे। विभाग की समीक्षा इस उद्देश्य से कर ली गयी कि योजनाओं के आंकड़े याद हो जायें। नवाचार के नुस्खे अफसरों से मांग लिये गये हैं।
अभी तक घोषित कार्यक्रम में अमित शाह ज्यादातर वक्त प्रदेश कार्यालय में ही रहेंगे। एक दिन वे मुख्यमंत्री निवास में संत महात्मा और चुनिंदा लोगों के साथ भोजन करेंगे। लेकिन भाजपा अध्यक्ष की इस यात्रा में सबका ध्यान खींचा है शिवराज सिंह के संकटमोचक कहे जाने वाले मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने। यात्रा के पहले दिन ही अमित शाह उनके निवास पर आयोजित भोज में शामिल होंगे। ये भोज खास इसलिये है क्योंकि अपने संगठनात्मक अभियान में अब तक राज्यों में गये शाह ने किसी दलित या पिछड़े के घर तो भोजन किया, लेकिन किसी मंत्री की मेहमाननवाजी स्वीकार नहीं की थी। उत्तरप्रदेश चुनाव में नरोत्तम की मेहनत ने ये अपवाद रच दिया।
लक-दक व्यवस्थाओं के बीच ठाकरेजी के कक्ष में विराजने वाले अमित शाह मध्यप्रदेश भाजपा का मंथन कर क्या निचोड़ निकालते हैं ये खुलासा आने वाले दिनों में होगा। यह दौरा उस प्रदेश संगठन को संजीवनी जरूर दे जायेगा, जहां प्रदेश कार्यसमिति जैसी बैठकों में भी जिलाध्यक्ष और सदस्यों के खुले सत्र अब अनिवार्य नहीं रहे। किसानों की नाराजगी की भड़की आग की सुगबुगाहट भी इसीलिए प्रदेश नेतृत्व और सरकार को नहीं मिली थी। हो सकता है शाह का यह प्रवास चौथी बार 200 पार के नारे को सार्थक करने का जरिया बने और 2019 में फिर मोदी सरकार की आधारशिला रखने की प्रेरणा दे। आखिर अमित शाह मध्यप्रदेश आ भी तो इसी मंशा से रहे हैं।

Saturday, May 27, 2017

72 घंटे के भीतर कलेक्टर का तबादला निरस्त करने के मायने?

ऐसा तो शतरंज के खेल में भी नहीं होता! सिर्फ गुड्डे-गुड़िया के खेल में बच्चे ऐसा करते हैं। सरकार ऐसा करे तो प्रश्नचिन्ह तो लगेंगे ही। मध्यप्रदेश सरकार का एक फैसला आज सरकार की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर रहा है। सवाल तब भी उठे थे जब हरदा कलेक्टर श्रीकांत बनोठ को आनन फानन में हटाने के आदेश जारी हुए और फील्ड के अफसरों के लिए कालापानी का पर्याय बन चुके मंत्रालय में बिना विभाग का उपसचिव पदस्थ करने के आदेश जारी हुए थे। इसे 72 घंटे पूरे होने से पहले श्रीकांत बनोठ को वापस हरदा कलेक्टर बनाने के आदेश फिर कर दिये गए। सवाल तो होंगे ही कि सरकार पहले सही थी या अब?
राजनीति की बिसात हो या शतरंज का खेल उसमें इतनी आसानी से फेरबदल संभव नहीं होता। प्रशासनिक निर्णयों में तो और भी मुश्किल। सतही तौर पर भले ही यह मामला कागज पर दो आदेश निकलने जितना आसान दिखता है, लेकिन है नहीं। हरदा में बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री कमल पटेल की कलेक्टर श्रीकांत बनोठ से अदावत के राजनीतिक और निजी कारण हैं। कमल पटेल अब विधायक नहीं हैं इसलिए उनका वो रसूख नहीं ऱहा जो मंत्री होने के दौरान हुआ करता था। उनके परिजनों खासकर बेटे सुदीप को लेकर कई आरोप लगे तो डेढ़ दर्जन पुलिस केस भी सुदीप पर बताए जाते हैं। प्रशासनिक अफसरों की मानें तो सुदीप को लेकर जनता के बीच में नाराजगी और भय का वातावरण था। जिसके चलते एसपी की रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने सुदीप को जिलाबदर करने की कार्यवाही की। इसी कार्यवाही ने पटेल की कलेक्टर से नाराजगी को तिल का ताड़ बनाया। हालांकि पटेल अपने बेटे का बचाव करते हैं और उसके खिलाफ हुई कार्रवाई को दुर्भावनाप्रेरित निरूपित करते हैं। अपने परिवार की प्रतिष्ठा और राजनीतिक आस्तित्व का सवाल खड़ा हुआ तो कमल पटेल ने न सिर्फ कलेक्टर और एसपी के खिलाफ मोर्चा खोला बल्कि नर्मदा नदी से अवैध रेत उत्खनन का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक लेकर गए। इस मामले में उन्होंने प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी तक को आरोपों के लपेटे में लिया। मुख्यमंत्री पर भी परोक्ष आरोप लगाए तो पड़ोसी जिलों के कलेक्टरों के साथ कुछ और मंत्रियों पर भी आरोप मढ़े। पटेल के एनजीटी जाने के बीच ही सरकार भी हलचल में आई तो उसने नर्मदा से रेत उत्खनन पर ही अस्थायी रोक लगा दी। यही नहीं पटेल के आरोपों के आधार पर हरदा कलेक्टर श्रीकांत बनोठ का तबादला आदेश भी जारी कर दिया। कलेक्टर को हटाने के पीछे सरकार की सोच रही होगी कि अब
शायद पटेल शांत हो जाएं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पटेल कैंप ने इसे अपनी जीत निरूपित किया और कमल के तेवर और तीखे हो गए। हरदा में सोशल मीडिया पर कुछ और अफसरों को इंजेक्शन लगाये जाने के दावे होने लगे। बयानबाजी के चलते बीजेपी को पटेल को नोटिस देकर पार्टी विरोधी बयानों के लिए सफाई मांगनी पड़ी। यही वो मुकाम था जहां सरकार को अपनी गलती का अहसास हुआ। जब कमल पटेल को दोषी माना जा रहा है तो कलेक्टर को सजा क्यों?  इस बिंदु पर सोच को केंद्रित किया गया। दूसरी वजह खुद पर लगने वाले आरोपों को लेकर आहत ब्यूरोक्रेसी है। यही कारण रहा कि तबादला आदेश जारी होने के बाद न तो श्रीकांत बनोठ ने ही जिला छोड़ने की पहल की और न ही उनकी जगह
कलेक्टर बनाए गए 2010 बैच के तरूण राठी ने अपनी पहली कलेक्टरी के मोह में हरदा का रूख किया। अंदरखाने की खबर है कि मुख्यमंत्री को कलेक्टर द्वारा की गई जिलाबदर की कार्यवाही के प्रमाण बताए गए। एक सीडी भी सौंपे जाने की खबर है।

बहरहाल हरदा के तबादला एपीसोड में एक बार फिर ब्यूरोक्रेसी की जीत हुई है। लेकिन पहले तबादला फिर निरस्त करने के फेर में किरकिरी मुख्यमंत्री की हो रही है। मुख्यमंत्री को छीछालेदार से बचाने के लिए श्रीकांत बनोठ के तबादला आदेश को निरस्त करने के बजाए यदि वे सही थे तो उन्हें दूसरे किसी बड़े जिले का कलेक्टर बना कर ईनाम दिया जा सकता था। इससे पहले भी समाधान ऑनलाइन में मुख्यमंत्री द्वारा सस्पेंड किये गए कटनी कलेक्टर रहे आईएएस प्रकाश जांगरे एक माह में ही बिना किसी जांच के बहाल हो गए थे। समाधान ऑनलाइन के ही हालिया प्रकरण में पीसीसीएफ पद पर कार्यरत सीनियर आईएफएस अफसर एल.के. चौधरी को जांच रिपोर्ट आने से पहले ही बहाल कर दिया गया। उन्हें भी मुख्यमंत्री ने सस्पेंड किया था। यह मामले ब्यूरोक्रेसी के प्रभाव को रेखांकित कर रहे हैं। लेकिन कमजोर किसे कर रहे, यह भी विचारणीय है। 

Monday, May 15, 2017

मिशन 2018: वोट के घोड़े को आस्था की खुराक !

मध्यप्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव का एजेंडा सेट कर लिया गया है। बीजेपी इस बार का चुनाव आस्था की बयार में लड़ेगी। इसीलिए चुनावी साल आने से पहले ही प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार धर्म और आध्यात्म की गंगा में डुबकियां लगा रही है। सिंहस्थ से शुरू हुआ यह सिलसिला अब इतना आगे बढ़ चुका है कि नर्मदा की सेवा के महाअभियान में लाखों लोगों की आहुतियां डलवा ली गई हैं। पहली बार प्रदेश भर में आदि शंकराचार्य की जयंती इतने भक्तिभाव मे मनाई गई। आने वाले दिनों में सत्ता की आस्था और परवान चढ़ेगी। कुल जमा विधानसभा चुनाव में भगवा को जन-जन का रंग बनाने के लिए नित नये कार्यक्रम और आयोजन तय किए जा रहे हैं। वोटबैंक की राजनीति में धर्म की चाशनी नई नहीं है, लेकिन मध्यप्रदेश में इसे नया रंग देने की कोशिश की जा रही है। और विपक्षी दल कांग्रेस सरकारी आस्था को परवान चढ़ते चुपचाप देख रहा है।
 लगातार चौथी बार सरकार बनाने के जतन में जुटी बीजेपी ने काफी सोच विचार कर ही 2018 के विधानसभा चुनाव में धर्म का कार्ड खेलने का फैसला किया है। धर्म के फ्लेवर से वह अपने पंद्रह साल के शासनकाल की अक्षमताओं, कमियों से जनता का मुंह मोड़ सकती है। खेती, किसानी, सिंचाई, विकास, स्वच्छता, सुशासन, सामाजिक सरोकार जैसी तमाम उपलब्धियों के बीच शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे भी हैं जो सवाल उठाए खड़े दिख रहे हैं। इन सवालों से बचने का सबसे अच्छा तरीका है विकास के राग के बजाए आस्था की ढपली बजाई जाए और बीजेपी मध्यप्रदेश में यही करती दिख रही है। उसकी आस्थापरक राजनीति को बल मिला है उत्तरप्रदेश की भगवा लहर से, जहां किसान और गन्ने के मुद्दे के साथ आस्था का मिश्रण सफलता की गारंटी बना था। वैसे तो चुनावी मुद्दा कांग्रेस को भी अपना तय करना चाहिए था। कांग्रेस के पास मुद्दों का अकाल भी नहीं है, लेकिन वह उन ज्वलंत विषयों पर धार नहीं चढ़ा पाई जो शिवराज सरकार की चमकार पर प्रहार करते। कांग्रेस की इसी कमजोरी को भांप कर चुनावी एजेंडा सेट करने की पहल शिवराज सिंह चौहान ने कर दी है तो कांग्रेस को भी बीजेपी के मुद्दों के आसपास रह कर चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा।    
 इसबार के चुनाव में नया मुद्दा उठाने की बीजेपी की सोच की मुख्य वजह वो सवाल हीं हैं, जो उसके वादों, घोषणाओं और शासन पर उठे हैं। चुनावी मुद्दों की बात करें तो साल 2003 में जब कांग्रेस के दस साल के दिग्विजय सिंह शासन को उखाड़ने का पहाड़ जैसा मिशन सामने था, तब विपक्ष में रही बीजेपी के रणनीतिकारों ने बीएसपी (बिजली-सड़क-पानी) पर दांव खेला था। प्रदेश की जनता तब इन्हीं बुनियादी जरूरतों की कमी से जूझ रही थी। इसलिये बीजेपी ने इन मुद्दों पर तत्कालीन कांग्रेसी सरकार को आक्रमण के बजाए बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर किया था। बीते 13 सालों में इन तीनों क्षेत्रों में काफी काम हुआ, लेकिन पूरी तरह बिजली, सड़क और पानी की समस्या दूर हुई हो ऐसा भी नहीं है। सड़कें जो बनीं वो कई जगह उधड़ गईं। बिजली में सरप्लस स्टेट होने के बावजूद गांवों में चौबीस घंटे बिजली आज भी सपना है। पानी की क्या बात करें। बुंदेलखंड और मालवा सहित कई इलाकों में मार्च आते ही जलसंकट घिर आता है। लेकिन राजनीतिक दलों के लिए अब ये तीनों विषय मुद्दा नहीं हैं।
 2008 का चुनाव उसी विकास के नाम पर लड़ा और जीता गया, जिसमें ‘बीएसपी’ के साथ औद्योगिक विकास और रोजगार शामिल था। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के आयोजनों ने निवेश की ऐसी झांकी बनाई कि लगा मध्यप्रदेश देश के प्रमुख औद्योगिक राज्यों को पीछे छोड़ देगा। ग्लोबल समिट अब भी हो रही हैं और इनके जरिये विकास का दिवास्वप्न अब भी देखा जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने इस दूसरे और पूरे पांच साल के कार्यकाल में जमकर प्रदेश भर के दौरे किए, लोगों से खूब मेल मुलाकात कीं और मतदाताओं और भविष्य के मतदाताओं के साथ पारिवारिक तानाबाना बुना। इस सबके साथ सुशासन और जनता की मांग पर घोषणाओं का शिवराज के फार्मूले ने भी मतदाताओं को कमल के फूल का बटन दबाने के लिए प्रेरित किया।
शिवराज ने 2008 से 2013 के बीच अपनी सरकार के दौरान की गई सोशल इंजीनियरिंग के दम पर 2013 के चुनाव की वैतरणी पार की। यह चुनाव पूरी तरह से सामाजिक योजनाओं को आगे कर लड़ा गया और 2008 की तुलना में ज्यादा विधायकों के साथ फिर शिवराज सरकार को जनता ने चुना। लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान, मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन जैसी उन दर्जनों योजनाओं की खुराक इस दौरान जनता को मिली, जिनका लाभ सीधे घरों तक पहुंचा। विकास कार्यों की तरह इसमें कमीशन का कोई खेल नहीं था। सरकारी खर्च पर तीर्थाटन करने वाले बुजुर्ग हों, या बिटिया के नाम सवा लाख रूपये के सर्टिफिकेट पाने वाले माता-पिता या फिर सरकारी खर्च पर बेटी के हाथ पीले करने वाले सभी धर्म या संप्रदाय के लोग। सबका साथ शिवराज पाने में कामयाब रहे।
विकास, सुशासन, खेती को लाभ का धंधा बनाना, सामाजिक योजनाओं के ताना-बाना से आगे क्या? इस सवाल का जवाब भी शिवराज सरकार और बीजेपी ने खोज ही लिया। चौथी बार सत्ता के लिए अबकी बार उसी फार्मूले को अपनाया जा रहा है, जो हिंदु पद्धति में चौथे आश्रम का उद्देश्य है, आनंद की अनुभूति के लिए धर्म का रसास्वादन। तो हाजिर है साल 2016 में सिंहस्थ का महाआयोजन। जिसकी ब्रांडिंग ऐसी की गई कि लगा धरती पर कहीं महाकुंभ हुआ है तो बस उज्जैन का सिंहस्थ ही सर्वश्रेष्ठ है। वोट की चाह लिए बिना वोटर को धर्म की वैतरणी का सुख दिया गया सिंहस्थ में। वो भी पावन क्षिप्रा में पतित पावन नर्मदा जल का संगम करा कर। सरकार ने आस्था की इस 'बुड़की' को यहीं नहीं थमने दिया, लोगों के मन से सिंहस्थ का प्रभाव घटने से ही पहले पांच माह की नमामि देवी नर्मदे, नर्मदा सेवा यात्रा आ गई। इस यात्रा के विराम से पहले ही मध्यप्रदेश में पहली बार इतने विशाल पैमाने पर आदि शंकराचार्य का प्रकटोत्सव मनाया गया। अब शंकराचार्य की अष्टधातु की प्रतिमा के लिए घर-घर से धातु संग्रहण के नाम पर आदि शंकराचार्य के बहाने हर घर को सरकार प्रेरित आस्था से जोड़ने की कवायद। उसके बाद प्रदेश की दूसरी नदियों के उद्धार के लिए भी नर्मदा जैसा ही भगीरथी प्रयास। शिवराज के आस्था के झोले में चुनावी लाभ की और भी कई योजनाएं हैं।

बीजेपी और शिवराज सरकार इस रास्ते पर इतने आगे बढ़ चुकी है कि विकास, सुशासन, शिक्षा, रोजगार जैसे विषय उसके लिए अब चुनावी मुद्दे नहीं रहे। ये सभी काम तो वह लगातार तीन सरकारों में करती ही आ रही है। बात आम जनता की बुनियादी जरूरतों की तो उसकी ‘आनंद’ की चाह कहीं न कहीं पूरी होती दिख रही है। फिर चाहे वह आस्था से ही हो। प्रदेश में अपना खोया वैभव हासिल करने के लिए हाथ-पैर मार रही कांग्रेस शिवराज के एजेंडे के जाल में फंस चुकी है। उसके बयानवीर नेता नर्मदा सेवा यात्रा को लेकर आरोप लगा भी रहे हैं तो आस्था के सामने उनके आरोप प्रभावहीन साबित हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि मध्यप्रदेश में विपक्ष के लिए मुद्दों का ही अकाल हो। तीन पंचवर्षीय कार्यकाल पूरा करने जा रही सरकार के खिलाफ कुछ हो ही न ऐसा भी संभव है क्या?  सरकार को घेरने के विषय तो छोड़िए, कांग्रेस अभी तक तय नहीं कर पाई कि वह किसके नेतृत्व में मध्यप्रदेश के चुनाव अभियान में उतरेगी। जहां सेनापति को लेकर आपसी संघर्ष चरम पर हो वहां विरोधी को घेरने के अस्त्र, शस्त्र की चिंता किसे होगी। ऐसे में चुनाव आएंगे तो बीजेपी के वार पर प्रतिवार करने में ही कांग्रेस का समय और शक्ति जाया हो सकता है। या फिर पुराने घपलों - घोटालों के दम पर वह जोर आजमाइश करेगी। शिक्षा की बदहाली अथवा नर्मदा से अवैध उत्खनन पर जनता को घरों से निकालने में वह सफल हो

सकती है? या फिर शिवराज सरकार द्वारा रची गई आस्था पर चोट का साहस जुटा पाएगी ?2018 का चुनावी सार इसी सवाल के जवाब में है।

Saturday, March 11, 2017

मोदी मैजिक : अब आगे की सोच....


मिशन 2014 में 272 प्लस का नारा....और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में 300 प्लस की धमक....! मुस्लिम - यादव समीकरण वाली समाजवादी पार्टी और मुस्लिम - दलित दांव वाली बहुजन समाज पार्टी के प्रभाव वाले उत्तरप्रदेश के कठिन मुकाबले में किसी भी मुस्लिम को मैदान में उतारे बिना दो तिहाई बहुमत का खम ठोंकने की दबंगई...चुनाव से चंद रोज पहले नोटबंदी का ऐतिहासिक और खतरनाक फैसला। बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट बस इतना ही नहीं है। बीजेपी ने ईवीएम से निकले मतदान के पुराने ट्रेंड और सपा-बसपा के चुनाव प्रबंधन का बारीक अध्ययन कर अपनी रणनीति बनाई और तीन दशक बाद रामलला की धरती उत्तरप्रदेश में 265 सीट के अपने लक्ष्य से अधिक सीटें हासिल कर लीं।
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम अपना आधार खोती जा रही कांग्रेस के लिए चिंता की बात हैं तो ये नतीजे सपा और बसपा को कांग्रेस से ज्यादा चिंता में डालेंगे, जिनके वजूद पर ही बीजेपी का बहुमत संकट डालेगा। ये नतीजे चिंता बढ़ाएंगे बीजेपी के क्षत्रपों की भी। जिनकी छवि के दम पर राज्यों में अब तक बीजेपी की सरकारें बनती रही हैं। लेकिन लोकसभा के बाद यूपी और उत्तराखंड में मोदी मैजिक के बाद क्षत्रपों की साख और जरूरत पर सवाल उठना स्वाभाविक है। आगे क्या...? सोचने विचारने की जरूरत जनता को भी है। क्योंकि इन परिणामों ने नोटबंदी जैसे मोदी के औचक फैसले पर मुहर लगाई है। कोई आश्चर्य की बात न होगी कि फिर किसी मौके पर कोई ऐसा ही नया फरमान स्काईलैब की तरह आ धमके।
काग्रेस मुक्त भारत के सपने के साथ 2014 में लोकसभा में पूर्ण बहुमत अर्जित करने वाली भारतीय जनता पार्टी को उत्तरप्रदेश में मिली सफलता ने एक-दो सर्वे एजेंसियों को छोड़ दें तो बीजेपी के कई नेताओं को भी भौचक कर दिया है। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही। फिर चाहे मायावती ही क्यों न ये सवाल करने की पहल करें। लखनऊ की तर्ज पर उत्तरप्रदेश के बाकी शहरों के पार्क में पेड़ पौधों की जगह पत्थर के हाथी बसाने की मायावती की हसरत मोदी के चुनावी रथ में इतनी बुरी तरह से कुचली जाएगी, क्या किसी को अनुमान था? इसलिये मायावती की बौखलाहट स्वाभाविक है। बसपा की बहनजी और अखिलेश यादव की बुआजी के सवाल मौजूं हैं। माया ने पूछा है कि गैर बीजेपी वोट भारतीय जनता पार्टी को ट्रांसफर कैसे हो गए? मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बीजेपी प्रत्याशी कैसे इतने वोट पा गए कि वो जीत जाएं? मायावती को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम पर ही संदेह है। उन्होंने चुनौती दी है कि ईवीएम की जगह पुरानी बैलेट पद्धति से चुनाव करा कर देख लें...बसपा की सरकार बननी थी ये सच्चाई सामने आ जाएगी। 
मायावती का ईवीएम को लेकर गुस्सा जायज माना जा सकता है, क्योंकि हर बार चुनाव में हारने वाली पार्टी ईवीएम के प्रति यही रवैया अपनाती है। लेकिन मुस्लिम क्षेत्रों में बीजेपी की जीत के उनके प्रश्न का जवाब वे भी अच्छी तरह जानती होंगी। मुस्लिमों के लिए आस्था के केंद्र देवबंद का ही उदाहरण देख लें। देवबंद में बसपा और सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के कुल वोट बीजेपी के गैर मुस्लिम प्रत्याशी से कहीं ज्यादा हैं। यानी बसपा और सपा ने ही एक दूसरे के सामने अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतारकर एक दूसरे के वोट काटे। फायदा बीजेपी ले गई। मायावती को मान लेना चाहिए कि दलित वोटबैंक के साथ गैर दलित वोट की जुगलबंदी का उनका फार्मूला अब बेअसर हो चला है। बसपा के हाथी पर उम्र हावी हो गई है। उन्हें नए सिरे से अपने कट्टर वोटबैंक को लामबंद करने की जरूरत है।
 उत्तरप्रदेश में सत्ता फिसलने के बाद समाजवादी संग्राम एक बार फिर मुलायम परिवार का घरेलू संग्राम बन सकता है। इसके किरदार अब नई भूमिकाओं में नए नाटक खेलते दिख सकते हैं। केजरीवाल को भी समझना चाहिए कि उनकी आम आदमी पार्टी को दिल्ली जैसा साथ इतनी आसानी से दूसरे राज्यों में नहीं मिल सकता है। दूसरे राज्यों में पांव पसारने के लिए उन्हें पहले वहां जमीन तैयार करनी होगी।

मोदी मैजिक के शिकार हुए इन दलों के नेता आगे की जो भी राजनीति तय करें। नई रणनीति बनाएं। मोदी मैजिक ने धड़कनें उन कई नेताओं की भी बढ़ा दी हैं जो बीजेपी में हैं। अब मध्यप्रदेश के जननायक शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के चाऊंर वाले बाबा रमन सिंह या फिर राजस्थान की महारानी वसुंधराराजे सिंधिया कोई भी 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत का श्रेय अकेले नहीं ले पाएगा। उनके नेतृत्व में पार्टी जीती भी तो क्रेडिट ले जाएंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह। जिनकी चुनावी व्यूह रचना ने उत्तरप्रदेश के मुश्किल मैदान में भगवा परचम फहरा दिया। 
मध्यप्रदेश के लिहाज से देखें तो यूपी के परिणाम उन अरविंद मेनन के लिए भी संजीवनी साबित होंगे, जिन्हें मध्यप्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री पद से हटा कर दिल्ली में कम महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया था। मेनन और मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा की जोड़ी ने कानपुर अंचल की 52 सीटों में से ज्यादातर पर कमाल का कमल खिला दिया।

Wednesday, January 18, 2017

मंत्रालय एक्सप्रेस 18 jan 2017

                                                               
1.  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंगलवार की तरह ही बुधवार को भी सरकारी कामकाज से छुट्टी पर हैं....सीएम ने परिवार के साथ हनुवंतिया टापू पर विकसित की गई पर्यटक गतिविधियों का आनंद लिया और बुधवार दोपहर भोपाल लौटने के बाद विदिशा चले गये....मुख्यमंत्री गुरूवार को सुबह दिल्ली जायेंगे और बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में भाग लेने के बाद भोपाल लौट कर डीजी धन मेले में शामिल होंगे.....
2.  मुख्य सचिव बी.पी. सिंह भी आठ दिन के अवकाश पर हैं....चीफ सेक्रेटरी के छुट्टी पर रहने के दौरान अपर मुख्य सचिव वित्त ए.पी. श्रीवास्तव को प्रभारी मुख्य सचिव बनाया गया है....सीएस की गैरमौजूदगी के चलते गुरूवार को होने वाली परख वीडियो कान्फ्रेंसिंग भी प्रभारी मुख्य सचिव लेंगे....परख में संभाग कमिश्नर और कलेक्टरों के साथ चर्चा कर श्रीवास्तव प्रदेश में टीकाकरण, शिशु मृत्युदर सहित सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की जिलों में प्रगति की जानकारी लेंगे तो नगर उदय अभियान की समीक्षा भी करेंगे....
3.  राज्यपाल के प्रमुख सचिव अजय तिर्की इस माह के अंत तक अपनी सेवाएं प्रदेश में देंगे...तिर्की को केंद्र सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव स्कूल शिक्षा पदस्थ करने के आदेश जारी किये हैं....लेकिन 26 जनवरी को राज्यपाल ओ.पी. कोहली के प्रदेश से बाहर होने के कारण तिर्की राजभवन में झंडावंदन करेंगे और उसके बाद 30 जनवरी को दिल्ली जाकर नया दायित्व संभालेंगे.....

4.  इधर मंत्रालय में नए साल के बजट को तैयार करने का काम चल रहा है....मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी बजट को लेकर जल्दी ही प्रमुख विभागों को आला अफसरों की बैठक लेंगे....वहीं 21 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा के बजट सत्र को लेकर भी तैयारियां तेज हो गई हैं.....विभागों में विधानसभा सत्र को लेकर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के साथ ही अन्य तैयारियां शुरू हो गई हैं......

Monday, January 2, 2017

मंत्रालय एक्सप्रेस 02Jan2017

    
1.   शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट की नए साल की पहली बैठक मंगलवार को होगी....मंत्रालय में सुबह 11 बजे से होने वाली कैबिनेट के एजेंडे में 18 मुद्दे हैं....लेकिन नए साल की कैबिनेट बैठक में प्रदेश के निवासियों और कर्मचारियों को कोई सौगात का प्रस्ताव इसमें शामिल नहीं है....कैबिनेट आधा दर्जन अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय जांच और पेंशन रोकने के प्रस्ताव पर विचार करेगी....सिमी आतंकियों के हाथों शहीद हुए जेल प्रहरी रमाशंकर यादव की बेटी सोनिया यादव को मंत्रालय में अनुकंपा नियुक्ति देने के प्रस्ताव के साथ ही फूड प्रोसेसिंग उद्योंगों से वसूले गए मंडी टैक्स की भरपाई करने पर भी कैबिनेट निर्णय ले सकती है.....
2.  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नए साल की छुट्टी मनाने के बाद शाम को भोपाल पहुंच रहे हैं....और आते ही सीधे मंत्रालय पहुंच कर कामकाज के साथ आला अधिकारियों से चर्चा करेंगे...सीएम का मंगलवार का दिन खासा व्यस्त रहेगा....मुख्यमंत्री सुबह कैबिनेट की बैठक के तुरंत बाद मंत्रियों और आला अधिकारियों की साझा मीटिंग लेंगे...इस बड़ी मीटिंग में नए साल की प्राथमिकताएं तय की जाएंगी....शाम को समाधान ऑनलाइन और नगर उदय अभियान की वीडियो कान्फ्रेंसिंग होगी......
3.  नए साल के पहले कामकाजी दिन सोमवार को मंत्रालय के सामने सामूहिक वंदेमातरम गायन हुआ....इस कार्यक्रम में मुख्य सचिव बी.पी. सिंह समेत मंत्रालय और सतपुड़ा तथा विंध्याचल भवन के कर्मचारी शामिल हुए...लेकिन लंबे अर्से बाद माह के पहले वर्किंग दिवस पर होने वाले इन आयोजन में कोई मंत्री शामिल नहीं हुआ....मंत्रालय में सोमवार को चहल-पहल ज्यादा रही....और दिन भर शुभकामनाओं के दौर चलते रहे....
4.  महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने सोमवार को विभाग के अफसरों की मीटिंग ली....महिला बाल विकास विभाग कुपोषण से निपटने और महिलाओं की जेंडर समानता के अधिकार दिलाने...के लिए नए साल में मिशन मोड पर काम करने की तैयारी में है...विभाग प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पूर्ण शक्ति केंद्र .यानी PSK सिंगल विंडो सर्विस सेंटर खोलने की तैयारी कर रहा है....इन सेंटर्स पर महिलाओं के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां होंगी....वहीं एक हजार ऩई आंगनवाड़ी खोलने और उनमें सुविधाएं मुहैया कराने का काम भी विभाग करेगा....

अशोक, तुम्हारे हत्यारे हम हैं...

अशोक से खरीदा गया वो आखिरी पेन आज हाथ में है, लेकिन उससे कुछ लिखने का मन नहीं है। अशोक... जिसे कोई शोक न हो। यही सोच कर नामकरण किया होगा उसक...