मिशन 2014 में 272 प्लस का
नारा....और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में 300 प्लस की धमक....! मुस्लिम - यादव समीकरण
वाली समाजवादी पार्टी और मुस्लिम - दलित दांव वाली बहुजन समाज पार्टी के प्रभाव
वाले उत्तरप्रदेश के कठिन मुकाबले में किसी भी मुस्लिम को मैदान में उतारे बिना दो
तिहाई बहुमत का खम ठोंकने की दबंगई...चुनाव से चंद रोज पहले नोटबंदी का ऐतिहासिक
और खतरनाक फैसला। बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट बस इतना ही नहीं है। बीजेपी ने ईवीएम
से निकले मतदान के पुराने ट्रेंड और सपा-बसपा के चुनाव प्रबंधन का बारीक अध्ययन कर
अपनी रणनीति बनाई और तीन दशक बाद रामलला की धरती उत्तरप्रदेश में 265 सीट के अपने
लक्ष्य से अधिक सीटें हासिल कर लीं।
पांच राज्यों के चुनाव
परिणाम अपना आधार खोती जा रही कांग्रेस के लिए चिंता की बात हैं तो ये नतीजे सपा
और बसपा को कांग्रेस से ज्यादा चिंता में डालेंगे, जिनके वजूद पर ही बीजेपी का
बहुमत संकट डालेगा। ये नतीजे चिंता बढ़ाएंगे बीजेपी के क्षत्रपों की भी। जिनकी छवि
के दम पर राज्यों में अब तक बीजेपी की सरकारें बनती रही हैं। लेकिन लोकसभा के बाद
यूपी और उत्तराखंड में मोदी मैजिक के बाद क्षत्रपों की साख और जरूरत पर सवाल उठना
स्वाभाविक है। आगे क्या...? सोचने विचारने की जरूरत जनता को भी है। क्योंकि इन परिणामों ने
नोटबंदी जैसे मोदी के औचक फैसले पर मुहर लगाई है। कोई आश्चर्य की बात न होगी कि
फिर किसी मौके पर कोई ऐसा ही नया फरमान स्काईलैब की तरह आ धमके।
काग्रेस मुक्त भारत के
सपने के साथ 2014 में लोकसभा में पूर्ण बहुमत अर्जित करने वाली भारतीय जनता पार्टी
को उत्तरप्रदेश में मिली सफलता ने एक-दो सर्वे एजेंसियों को छोड़ दें तो बीजेपी के
कई नेताओं को भी भौचक कर दिया है। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही। फिर चाहे मायावती ही
क्यों न ये सवाल करने की पहल करें। लखनऊ की तर्ज पर उत्तरप्रदेश के बाकी शहरों के
पार्क में पेड़ पौधों की जगह पत्थर के हाथी बसाने की मायावती की हसरत मोदी के
चुनावी रथ में इतनी बुरी तरह से कुचली जाएगी, क्या किसी को अनुमान था? इसलिये मायावती की बौखलाहट
स्वाभाविक है। बसपा की बहनजी और अखिलेश यादव की बुआजी के सवाल मौजूं हैं। माया ने
पूछा है कि गैर बीजेपी वोट भारतीय जनता पार्टी को ट्रांसफर कैसे हो गए? मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में
बीजेपी प्रत्याशी कैसे इतने वोट पा गए कि वो जीत जाएं? मायावती को इलेक्ट्रानिक वोटिंग
मशीन यानी ईवीएम पर ही संदेह है। उन्होंने चुनौती दी है कि ईवीएम की जगह पुरानी
बैलेट पद्धति से चुनाव करा कर देख लें...बसपा की सरकार बननी थी ये सच्चाई सामने आ
जाएगी।
मायावती का ईवीएम को लेकर गुस्सा जायज माना जा सकता है, क्योंकि हर बार
चुनाव में हारने वाली पार्टी ईवीएम के प्रति यही रवैया अपनाती है। लेकिन मुस्लिम
क्षेत्रों में बीजेपी की जीत के उनके प्रश्न का जवाब वे भी अच्छी तरह जानती होंगी।
मुस्लिमों के लिए आस्था के केंद्र देवबंद का ही उदाहरण देख लें। देवबंद में बसपा
और सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के कुल वोट बीजेपी के गैर मुस्लिम प्रत्याशी से कहीं
ज्यादा हैं। यानी बसपा और सपा ने ही एक दूसरे के सामने अल्पसंख्यक उम्मीदवार
उतारकर एक दूसरे के वोट काटे। फायदा बीजेपी ले गई। मायावती को मान लेना चाहिए कि
दलित वोटबैंक के साथ गैर दलित वोट की जुगलबंदी का उनका फार्मूला अब बेअसर हो चला
है। बसपा के हाथी पर उम्र हावी हो गई है। उन्हें नए सिरे से अपने कट्टर वोटबैंक को
लामबंद करने की जरूरत है।
उत्तरप्रदेश में सत्ता फिसलने के बाद समाजवादी संग्राम
एक बार फिर मुलायम परिवार का घरेलू संग्राम बन सकता है। इसके किरदार अब नई
भूमिकाओं में नए नाटक खेलते दिख सकते हैं। केजरीवाल को भी समझना चाहिए कि उनकी आम आदमी
पार्टी को दिल्ली जैसा साथ इतनी आसानी से दूसरे राज्यों में नहीं मिल सकता है। दूसरे
राज्यों में पांव पसारने के लिए उन्हें पहले वहां जमीन तैयार करनी होगी।
मोदी मैजिक के शिकार हुए
इन दलों के नेता आगे की जो भी राजनीति तय करें। नई रणनीति बनाएं। मोदी मैजिक ने धड़कनें
उन कई नेताओं की भी बढ़ा दी हैं जो बीजेपी में हैं। अब मध्यप्रदेश के जननायक शिवराज
सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के चाऊंर वाले बाबा रमन सिंह या फिर राजस्थान की महारानी
वसुंधराराजे सिंधिया कोई भी 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत का श्रेय
अकेले नहीं ले पाएगा। उनके नेतृत्व में पार्टी जीती भी तो क्रेडिट ले जाएंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह। जिनकी चुनावी व्यूह रचना
ने उत्तरप्रदेश के मुश्किल मैदान में भगवा परचम फहरा दिया।
मध्यप्रदेश के लिहाज से
देखें तो यूपी के परिणाम उन अरविंद मेनन के लिए भी संजीवनी साबित होंगे, जिन्हें
मध्यप्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री पद से हटा कर दिल्ली में कम महत्वपूर्ण
दायित्व सौंपा गया था। मेनन और मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा की
जोड़ी ने कानपुर अंचल की 52 सीटों में से ज्यादातर पर कमाल का कमल खिला दिया।