ऐसा तो शतरंज के खेल में भी नहीं होता! सिर्फ गुड्डे-गुड़िया के खेल में बच्चे ऐसा
करते हैं। सरकार ऐसा करे तो प्रश्नचिन्ह तो लगेंगे ही। मध्यप्रदेश सरकार का एक
फैसला आज सरकार की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर रहा है। सवाल तब भी उठे थे जब
हरदा कलेक्टर श्रीकांत बनोठ को आनन फानन में हटाने के आदेश जारी हुए और फील्ड के
अफसरों के लिए कालापानी का पर्याय बन चुके मंत्रालय में बिना विभाग का उपसचिव
पदस्थ करने के आदेश जारी हुए थे। इसे 72 घंटे पूरे होने से पहले श्रीकांत बनोठ को
वापस हरदा कलेक्टर बनाने के आदेश फिर कर दिये गए। सवाल तो होंगे ही कि सरकार पहले
सही थी या अब?
राजनीति की बिसात हो या शतरंज का खेल उसमें इतनी आसानी से फेरबदल संभव
नहीं होता। प्रशासनिक निर्णयों में तो और भी मुश्किल। सतही तौर पर भले ही यह मामला
कागज पर दो आदेश निकलने जितना आसान दिखता है, लेकिन है नहीं। हरदा में बीजेपी नेता
और पूर्व मंत्री कमल पटेल की कलेक्टर श्रीकांत बनोठ से अदावत के राजनीतिक और निजी
कारण हैं। कमल पटेल अब विधायक नहीं हैं इसलिए उनका वो रसूख नहीं ऱहा जो मंत्री
होने के दौरान हुआ करता था। उनके परिजनों खासकर बेटे सुदीप को लेकर कई आरोप लगे तो
डेढ़ दर्जन पुलिस केस भी सुदीप पर बताए जाते हैं। प्रशासनिक अफसरों की मानें तो
सुदीप को लेकर जनता के बीच में नाराजगी और भय का वातावरण था। जिसके चलते एसपी की
रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने सुदीप को जिलाबदर करने की कार्यवाही की। इसी
कार्यवाही ने पटेल की कलेक्टर से नाराजगी को तिल का ताड़ बनाया। हालांकि पटेल अपने
बेटे का बचाव करते हैं और उसके खिलाफ हुई कार्रवाई को दुर्भावनाप्रेरित निरूपित
करते हैं। अपने परिवार की प्रतिष्ठा और राजनीतिक आस्तित्व का सवाल खड़ा हुआ तो कमल
पटेल ने न सिर्फ कलेक्टर और एसपी के खिलाफ मोर्चा खोला बल्कि नर्मदा नदी से अवैध
रेत उत्खनन का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक लेकर गए। इस मामले में उन्होंने
प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी तक को आरोपों के लपेटे में लिया। मुख्यमंत्री पर
भी परोक्ष आरोप लगाए तो पड़ोसी जिलों के कलेक्टरों के साथ कुछ और मंत्रियों पर भी
आरोप मढ़े। पटेल के एनजीटी जाने के बीच ही सरकार भी हलचल में आई तो उसने नर्मदा से
रेत उत्खनन पर ही अस्थायी रोक लगा दी। यही नहीं पटेल के आरोपों के आधार पर हरदा
कलेक्टर श्रीकांत बनोठ का तबादला आदेश भी जारी कर दिया। कलेक्टर को हटाने के पीछे
सरकार की सोच रही होगी कि अब
कलेक्टर बनाए गए 2010 बैच के
तरूण राठी ने अपनी पहली कलेक्टरी के मोह में हरदा का रूख किया। अंदरखाने की खबर है
कि मुख्यमंत्री को कलेक्टर द्वारा की गई जिलाबदर की कार्यवाही के प्रमाण बताए गए। एक
सीडी भी सौंपे जाने की खबर है।
बहरहाल हरदा के तबादला एपीसोड में एक बार फिर ब्यूरोक्रेसी की जीत हुई
है। लेकिन पहले तबादला फिर निरस्त करने के फेर में किरकिरी मुख्यमंत्री की हो रही
है। मुख्यमंत्री को छीछालेदार से बचाने के लिए श्रीकांत बनोठ के तबादला आदेश को
निरस्त करने के बजाए यदि वे सही थे तो उन्हें दूसरे किसी बड़े जिले का कलेक्टर बना
कर ईनाम दिया जा सकता था। इससे पहले भी समाधान ऑनलाइन में मुख्यमंत्री द्वारा
सस्पेंड किये गए कटनी कलेक्टर रहे आईएएस प्रकाश जांगरे एक माह में ही बिना किसी
जांच के बहाल हो गए थे। समाधान ऑनलाइन के ही हालिया प्रकरण में पीसीसीएफ पद पर
कार्यरत सीनियर आईएफएस अफसर एल.के. चौधरी को जांच रिपोर्ट आने से पहले ही बहाल कर
दिया गया। उन्हें भी मुख्यमंत्री ने सस्पेंड किया था। यह मामले ब्यूरोक्रेसी के
प्रभाव को रेखांकित कर रहे हैं। लेकिन कमजोर किसे कर रहे, यह भी विचारणीय है।


