Wednesday, August 23, 2017

दिल से नहीं, डंडे से मानते हैं अफसर!

प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया बसंत प्रताप सिंह से लेकर राजस्व महकमे के छोटे और बड़े अफसर आजकल राजस्व मामलों की पेंडेंसी दूर करने में जुटे हुए हैं। आलम यह है कि मुख्य सचिव को भी जिलों में लंबित मामलों को निपटाने के निर्देश देने के लिए मंत्रालय के बाहर निकल कर संभागीय बैठकें लेनी पड़ रही हैं। सवाल यह है कि बंटवारे और नामांतरण के मामले निपटाने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? कहीं राजस्व संबंधी मामले पेंडिंग मिलने पर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की गर्जना तो इसका कारण नहीं? यदि ऐसा है तो क्या वाकई इतने छोटे मामलों में इस बार अफसर नपेंगे? या फिर केंद्र सरकार की तर्ज पर काम न करने वालों को अनिवार्य सेवानिवृत्त देने की धमकी ने उत्प्रेरक की भूमिका अदा की।

रेवेन्यू से जुड़े मामलों में अचानक परवान चढ़ी सक्रियता की वजह भरपूर सहायता और सुविधाओं के दावे के बीच अचानक उपजा किसान आंदोलन है। इसकी आंच झेल चुकी सरकार ने किसान और गांव वालों को खुश करने के जो उपाय तलाशे हैं उनमें एक उपाय राजस्व संबंधी मामलों का निराकरण भी है। लेकिन यह सक्रियता प्रदेश सरकार, उसके कामकाज के तरीके और पूरी अफसरशाही को कटघरें में खड़ा करती है। यदि मुख्यमंत्री धमकी नहीं देते तो क्या हजारों-लाखों बंटवारे और नामांतरण के अविवादित मामले और कई साल तक लटके रहते? क्या कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी, तहसीलदार और नायब तहसीलदार अपने कार्यक्षेत्र के ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं कर रहे थे, या फिर उनकी रूचि इन प्रकरणों में नहीं है, अथवा सरकार के दीगर कामों के बीच उन्हें इनके लिए समय ही नहीं मिल रहा? क्या हर मंगलवार को सभी दफ्तरों में होने वाली जनसुनवाई महज रस्मी हो गई है, जिनमें किसान और आम आदमी अपने इन्हीं प्रकरणों के निराकरण नहीं होने की शिकायत लेकर आता है। मुख्यमंत्री के जनशिकायत निवारण के फोरम समाधान ऑनलाइन और सीएम हेल्पलाइन भी इसके लिए कारगर साबित नहीं हो रहे! और तो और हर महीने मुख्य सचिव द्वारा की जाने वाली ‘परख’ वीडियो कान्फ्रेंस एवं इसके इतर होने वाली जिलों की समीक्षाएं भी बेकार साबित हो रही हैं।

आम जनता के दुःख दर्द दूर करने और सुशासन देने के तमाम उपायों के बावजूद मुख्यमंत्री को भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रम में राजस्व कोर्ट के लंबित मामलों को लेकर कलेक्टरों को उल्टा टांगने की बात कहने की जरूरत अगर पड़ी है तो साफ है पूरे सिस्टम में कम-से-कम इस मामले में तो खोट है। ऐसा नहीं होता तो मुख्य सचिव को क्यों सिर्फ राजस्व प्रकरणों को लेकर संभाग-संभाग भटकना पड़ता। नहीं तो, बड़े-बड़े मामलों पर ‘वीसी’ मंत्रालय के आरामदेह वीडियो कान्फ्रेंसिंग कक्ष से ही कर ली जाती है। चीफ सेक्रेटरी संभागों के लिए निकले भी तब जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें इसके निर्देश दिए, अन्यथा निजाम जैसा चलता है वैसा ही चलता रहता (खुद मुख्यमंत्री ने एक से अधिक मौकों पर मुख्य सचिव को संभागों में जाकर राजस्व मामलों पर बैठक करने के निर्देश देने की जानकारी दी है)। मुख्यमंत्री को इसके बाद भी भरोसा नहीं था, इसीलिये विभाग में प्रमुख सचिव और सचिव होने के बावजूद अपने सचिव हरिरंजन राव को दूसरे राजस्व सचिव की भी जिम्मेदारी देकर ब्यूरोक्रेसी को चौंका दिया। पार्टी बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने अपनी पहली रेडियो वार्ता ‘दिल से’ में तीन माह बाद अविवादित नामांतरण और बंटवारे का प्रकरण बताने वालों को ईनाम देने की घोषणा भी कर दी। यानी सीएम के रडार पर अब राजस्व कोर्ट के मामले प्रमुखता से हैं।

लेकिन सवाल फिर वही है कि प्रशासनिक अफसरों को क्यों बार-बार उनके काम की याद मुख्यमंत्री को दिलानी पड़ती है। यदि चीफ मिनिस्टर न बोलें तो प्रशासन अपना काम नहीं करेगा? सीएम के इन निर्देशों से यही इंगित होता है। लगातार सत्ता के 14 साल पूरे कर रहे बीजेपी राज पर आरोप भी यही लगते हैं कि सरकार अफसर चला रहे हैं। इस आवरण को तोड़ने का जतन गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री ऐसी सख्ती दिखा कर करते हैं। फिलहाल तीन माह की डेडलाइन बीतने के बाद ही पता चलेगा कि असलियत क्या है, लेकिन इस बीच राजस्व विभाग के अफसर दावा कर रहे हैं कि तीन माह में पुरानी पेंडेंसी खत्म कर दी जाएगी। यह और बात है कि जिलों में तैनात अफसरों में उल्टा टांगने वाले बयान को लेकर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं है।

समाधान में मिलेगी सजा !

मुख्यमंत्री ने समाधान ऑनलाइन में अब जनशिकायतों के साथ ही लोकसेवा गारंटी और सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों संबंधी शिकायतें सुनने का भी फैसला किया है। अफसरों में राजस्व संबंधी मामलों को हड़बड़ी में निपटाने की एक वजह यह भी है। समाधान ऑनलाइन वो फोरम है जहां वीडियो कान्फ्रेंसिंग में शिकायतकर्ता की मौजूदगी में काम न करने वाले अफसरों को सफाई पेश करनी होती है। इस समीक्षा में अब तक एक आईएएस, एक आईएफएस समेत दर्जनों अफसरों को निलंबन की सजा मिल चुकी है।

मंत्री भी तो नहीं सुनते....

मुख्यमंत्री के निर्देश अफसर नहीं मानते हैं, यह आरोप अपनी जगह। लेकिन, प्रदेश के मंत्री भी मुख्यमंत्री के निर्देश और सलाह नहीं मानते। तभी तो हर चौथी कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री को मंत्रियों को प्रभार के जिले में जाने, गांव में रात गुजारने, समीक्षा करने जैसे निर्देश देने पड़ते हैं। हालिया कैबिनेट बैठक में भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दौरे के हवाले से ये निर्देश दिये गए। यह अलग बात है कि एक मंत्री ने प्रभार के जिलों में खुद के जाने का हवाला देकर बार-बार इस सलाह के औचित्य पर ही सवाल उठा दिये थे।

Wednesday, August 16, 2017

शाह को शाही सुरमा...!

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गुरुवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण हो रहा है। अंत्योदय का सूत्र देने वाले दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष में भाजपा संगठन को गति देने के महान उद्देश्य से आ रहे हैं भाजपाध्यक्ष। तीन दिन के उनके इस प्रवास में कई बैठकें होंगी। पार्टी के अलग-अलग स्तर की बैठकें लेंगे अमित शाह। 43 नगरीय निकाय के नतीजों के आईने में हो रहे इस दौरे को लेकर भाजपा में व्यापक तैयारियां की गयी हैं। इतनी व्यापक कि अध्यक्ष भी भौचक्के रह जाएं।
फिजूलखर्ची रोकने का संदेश देने नियमित विमान सेवा से आ रहे अमित शाह अधिकृत दौरे से एक रात पहले भोपाल पहुंच जाएंगे। राजशाही दौर की तर्ज पर उन्हें शहर के एक छोर पर बने वीआईपी गेस्ट हाउस में पहली रात बितानी होगी। अगले दिन शोभायात्रा (जुलूस) के साथ नगर प्रवेश होगा। साधारण कार्यकर्ता की तरह वे भाजपा प्रदेश कार्यालय दीनदयाल परिसर में ही बाकी दिन निवास करेंगे। उनकी रिहाईश के लिए कार्यालय के उस कक्ष को सजाया संवारा गया है,जहां कभी पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे रहा करते थे। सिर्फ एक कक्ष की बात नहीं है कार्यालय समेत उसके आवासीय कमरों को किसी तीन सितारा होटल की तर्ज पर संवार दिया गया है। इन कमरों में शाह के साथ आने वाले सहयोगी सिर्फ 3 दिन रुकेंगे। सारा तामझाम शाह की आंखों में 'सब कुछ बेहतर होने' का सुरमा लगाने का प्रयास जैसा है।
रही बात साज संवार की तो मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी को इस काम मे महारत हासिल है। फिर चाहे शाह के प्रवास से एक दिन पहले आये नगरीय निकाय के नतीजे हों। जिसका जश्न भाजपा मना रही है तो कांग्रेस भी जश्न में डूबी हुई है। नतीजों को देखने का चश्मा जो दोनों का अलग अलग है। कांग्रेस की खुशी इन 43 निकायों में 9 से 15 पर पहुंचने की है तो भाजपा 43 में से 25 पर जीत को लेकर खुशी का इजहार कर रही है। ये और बात है कि भाजपा अपनी पुरानी स्थिति कायम रखने में असफल साबित हुई। पार्टी के कुछ लोग हिसाब तो उन निकायों के भी लगा रहे जहां जीत की गारंटी माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार किया और नतीजा कांग्रेस के पक्ष में गया। अमित शाह की बैठकों में इस पर सवाल होने के कयास भाजपा के नेता लगाने लगे हैं। तभी तो कांग्रेस नेता कमलनाथ भी इसी बात को हवा दे रहे हैं।कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है, शिवराज जहाँ -जहाँ प्रचार के लिये गये, वहां आधी से ज़्यादा सीटें भाजपा हारी...ख़ुद उनके क्षेत्र में भाजपा हारी...शिवराज के पतन की शुरुआत..। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को भी भाजपा का जीत जश्न नहीं पच रहा। यादव ने कहा है कि दोगुनी सीटें तो कांग्रेस जीती है। फिर जश्न भाजपा कैसे मना रही! लेकिन इन छोटे चुनाव की जीत-हार पर रार क्यों? क्योंकि ये किसान आंदोलन के बाद हुए पहले चुनाव हैं। क्योंकि ये निकाय चुनाव आदिवासी बेल्ट में अगले विधानसभा इलेक्शन का लिटमस टेस्ट हैं। क्योंकि ये चुनाव प्रदेश भाजपा को नख-शिख परखने आ रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रवास से ठीक पहले हुए हैं।
किसान आंदोलन, ट्राइबल विधानसभा क्षेत्रों में निकली नर्मदा सेवा यात्रा और उनके परिणाम और प्रतिफल की बात तो अमित शाह करेंगे ही? सवाल ये भी हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी तथा मध्यप्रदेश में घर-घर तक पैठ के बावजूद क्यों कार्यकर्ता और नेता किसानों की नाराजगी को समय पर भांप नहीं पाये थे? सरकारी खुफिया तंत्र फेल सही, कार्यकर्त्ता तंत्र तो जीवंत इकाई है! या फिर बैठक, भोजन और विश्राम की परंपरा वाले दल में अब चर्चा एवं बैठक का स्थान नहीं रहा? क्या कार्यकर्ता और गांव-कस्बे के नेता सच बोलने से बचते हैं? अमित शाह इन सवालों के जवाब तलाशेंगे ही। लेकिन इस सबसे निपटने की भी तैयारी कर ली गयी है। शाह के लिये बैठकों का सिलसिला बना लिया गया है। तीन साल में जो विभाग, प्रकल्प गठित नही किये गये थे। आनन फानन में बन गये। बैठकें भी हो गयी इनकी। क्या पदाधिकारी और क्या मंत्री सभी भाजपा का संविधान और पंचनिष्ठा रट रहे हैं। पता नहीं किससे क्या पूछ लें शाह! मंत्रियों की तो अजीब हालत हो गयी है। सभी ने प्रभार के जिलों के दौरे कर डाले। वो भी हो आये जिले में, जो मुख्यमंत्री के बार-बार कहने पर भी नहीं जाते थे। विभाग की समीक्षा इस उद्देश्य से कर ली गयी कि योजनाओं के आंकड़े याद हो जायें। नवाचार के नुस्खे अफसरों से मांग लिये गये हैं।
अभी तक घोषित कार्यक्रम में अमित शाह ज्यादातर वक्त प्रदेश कार्यालय में ही रहेंगे। एक दिन वे मुख्यमंत्री निवास में संत महात्मा और चुनिंदा लोगों के साथ भोजन करेंगे। लेकिन भाजपा अध्यक्ष की इस यात्रा में सबका ध्यान खींचा है शिवराज सिंह के संकटमोचक कहे जाने वाले मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने। यात्रा के पहले दिन ही अमित शाह उनके निवास पर आयोजित भोज में शामिल होंगे। ये भोज खास इसलिये है क्योंकि अपने संगठनात्मक अभियान में अब तक राज्यों में गये शाह ने किसी दलित या पिछड़े के घर तो भोजन किया, लेकिन किसी मंत्री की मेहमाननवाजी स्वीकार नहीं की थी। उत्तरप्रदेश चुनाव में नरोत्तम की मेहनत ने ये अपवाद रच दिया।
लक-दक व्यवस्थाओं के बीच ठाकरेजी के कक्ष में विराजने वाले अमित शाह मध्यप्रदेश भाजपा का मंथन कर क्या निचोड़ निकालते हैं ये खुलासा आने वाले दिनों में होगा। यह दौरा उस प्रदेश संगठन को संजीवनी जरूर दे जायेगा, जहां प्रदेश कार्यसमिति जैसी बैठकों में भी जिलाध्यक्ष और सदस्यों के खुले सत्र अब अनिवार्य नहीं रहे। किसानों की नाराजगी की भड़की आग की सुगबुगाहट भी इसीलिए प्रदेश नेतृत्व और सरकार को नहीं मिली थी। हो सकता है शाह का यह प्रवास चौथी बार 200 पार के नारे को सार्थक करने का जरिया बने और 2019 में फिर मोदी सरकार की आधारशिला रखने की प्रेरणा दे। आखिर अमित शाह मध्यप्रदेश आ भी तो इसी मंशा से रहे हैं।

अशोक, तुम्हारे हत्यारे हम हैं...

अशोक से खरीदा गया वो आखिरी पेन आज हाथ में है, लेकिन उससे कुछ लिखने का मन नहीं है। अशोक... जिसे कोई शोक न हो। यही सोच कर नामकरण किया होगा उसक...