दिग्विजय सिंह से सीखें पराजय के बाद भी डटे रहना
ये क्या! देश के जाने माने वकील, राज्यसभा सांसद और मध्यप्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता विवेक तन्खा ने यह क्या कह दिया! ‘जब चुनाव मोदी के नाम पर हुआ है और कही भी लोकल सांसद प्रत्याशी का कोई महत्व या नाम नहीं लिया गया तो अपेक्षा मोदी जी से होगी। वोट उनको दिया तो काम की उम्मीद किससे करें?’ सौ फीसदी सही कथन है तन्खा जी आपका!
राज्यसभा सदस्य के तौर पर और उससे भी पहले से
आपने जबलपुर में बहुत काम किया है। ट्विटर पर जब आपने मोदी को लेकर अपनी यह राय
व्यक्त की तो आपके समर्थन में कई लोगों ने जबलपुर में हुए कार्य गिनाए हैं (कुछ लोगों
ने
आपकी कमियां भी बताई हैं)।
आपने भी अपने द्वारा कराए गए कार्यों का भरपूर जिक्र किया है। लेकिन इतना
नैराश्य...इतनी हताशा क्यों?
जब जनता ने देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुना है तो स्वाभाविक है वे
देशवासियों के लिए काम करेंगे ही। आपकी तरह आम मतदाताओं की भी अपेक्षा उनसे ही है।
लेकिन आपको पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह से
सीखने की जरूरत है। भोपाल संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतना अभेद्य किले में सेंध लगाने
जैसा होने के बावजूद उन्होंने न केवल मुख्यमंत्री कमल नाथ की चुनौती स्वीकार की,
बल्कि चुनाव जीतने के जितने जतन किए जा सकते थे, वो सभी किए। पराजय के बाद भी वे
भोपाल में सक्रिय हैं और चुनाव के दौरान जारी किए गए भोपाल के अपने विजन डॉक्यूमेंट
को पूरा कराने के प्रयास में जुटे हैं। राजनीति भी क्रिकेट के खेल जैसी है।
जीत-हार इसमें लगी रहती है, लेकिन कोई खिलाड़ी प्रेक्टिस या मैच इस डर से नहीं
छोड़ता कि वो हार रहा है या हार जाएगा।
पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आपने जो अपने मन की बात
कही है, उसकी उपज संभवतः आपकी प्रयागराज यात्रा है। आपने ही ट्वीट कर बताया था कि ‘कुछ दिन पूर्व
इलाहबाद अब प्रयागराज जाने का मौका मिला। अच्छा महसूस हुआ। इलाहबाद एक बदला शहर नजर
आया। कुंभ के कारण उसका रूप ही बदल गया है। सड़क, फ्लाईओवर, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन
इत्यादि बदल गए हैं। जबलपुर को भी ऐसे कायाकल्प की जरूरत है। मोदी सरकार से कुछ
ऐसी अपेक्षा जबलपुर को भी है।’ इस
ट्वीट पर आई प्रतिक्रियाओं की प्रतिक्रिया में आपने जबलपुर में स्वयं के योगदान को
रेखांकित करने के साथ ही जबलपुर के विकास का जिम्मा ही मोदी को दे दिया। जैसा कि
आपका ट्वीट कहता है। जबलपुर में पेटीएम बैंक का ऑफिस खुलवाया, सांसद निधि का
पारदर्शिता के साथ जन कल्याण के लिए सदुपयोग। ज्यादातर वंचित बस्तियों में बोरवेल
खुदवाए। अस्पतालों में मरीजों की जांच के लिए मशीनें दीं। जबलपुर दक्षिण में चुनाव
से कुछ माह पहले विधायकों की सिफारिश पर एक करोड़ की लागत के छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स
मंजूर कराए। जबलपुर में कमल नाथ कैबिनेट की मीटिंग कराई और 2700 करोड़ रुपये के कई कार्य
मंजूर कराए। पांच करोड़ की लागत से ब्लड बैंक बनवाए। वाकई जैसा आपने बताया है- आपने
जबलपुर के लिए और बहुत कुछ किया है। लेकिन
यह आत्मचिंतन कैसा है कि ‘इतना
कुछ करने के बाद भी अगर मैं जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया तो पता नहीं
इसका आकलन कैसे करूं।’
पराजय के कारणों की पड़ताल हो। आत्मचिंतन करें
अच्छी बात है। इस सब के बाद भी जनसेवक को पहले से ज्यादा जोश से जनता के लिए जुटना
चाहिए। आपको लगातार दो चुनाव में पछाड़ने वाले और जबलपुर की हर छोटी-बड़ी समस्या पर ‘यह मेरा विषय
नहीं है’ नारा
बुलंद करने वाले राकेश सिंह हो सकता है इस बार मोदी मैजिक के सहारे जीत गए हों। ये
मैजिक हर बार तो चलेगा नहीं। मोदी है तो हर काम मुमकिन हो यह भी संभव नहीं है।
इसलिए जबलपुर की चिंता करिए। उसे मोदी के सहारे मत छोड़िए। नहीं तो....!
