
ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में होता है...कि शादी के मंडप में पुलिस आ धमके। रील लाइफ की कहानी रियल लाइफ में उतरे तो बवाल तो मचना ही था। सो मच गया। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के घर सीबाआई की छापेमारी का यह एंगल घर-घर की कहानी और सास-बहू छाप सीरियल देखने की आदी भारतीय महिलाओं और कई पुरूषों को हजम नहीं होगा। सोचिए, किसी बाप ने कितने अरमानों से बेटी के विवाह की तैयारियां की होंगी। इस मौके को यादगार बनाने के हर संभव इंतजाम किए जाते हैं। फिर यह तो एक मुख्यमंत्री और बड़े नेता की लाड़ली की शादी थी...अविस्मरणीय बनाने के सारे जतन किए ही होंगे, लेकिन ये न सोचा होगा कि ऐन फेरे के वक्त उनके घर पर सीबीआई जैसी 'प्रतिष्ठित' जांच एजेंसी धावा बोलेगी।
घटना ड्रामेटिक है...नाराज करने वाली है और विस्मित करने वाली भी... कुछ दिन बाद लोग सीरियल की कहानी की तरह इसे भी भूल जाएंगे। पर क्या वीरभद्र और उनका परिवार इसे कभी भुला पाएगा। अरे भाई छापा मारने...कार्रवाई करने के लिए केवल एक यही दिन बचा था क्या? वीरभद्र सिंह कहीं भागे जा रहे थे या फिर सीबीआई को उम्मीद थी शादी के मौके पर उनकी वो धन संपदा बेपर्दा मिलेगी, जिसकी शिकायत पर जांच चल रही है। ये कोई सतयुग तो है नहीं। साहब को क्या अंदेशा नहीं रहा होगा खुद पर होने वाली छापेमारी का! सादगी से मंदिर में सप्तपदी करा रहे थे बिटिया की। इस समारोह के लिए वो परिवार समेत घर से निकलते इससे पहले छापा डल गया। रंग में भंग पड़ गया। वीरभद्र तो वीरभद्र हैं। छठवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। राजनीतिक डगर पर संभलने और फिसलने के अनुभवी हैं। इसलिए छापे से डरे नहीं, डिगे नहीं। बेटी को विदा करने के बाद सीबीआई वालों से मिले। पूरे विषाद और क्षोभ के साथ। खुशी के मौके पर अपमान के बाद यही चीजें तो बची हैं उनके पास। यह पहला मौका नहीं है जब किसी बड़े नेता को सीबीआई ने लपेटा है। पर इस तरह से किसी को नहीं लपेटा जैसा वीरभद्र के साथ हुआ।
बात यहीं नहीं थमती। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी वाला मामला है यह। आज जो लोग इस घटना पर खुश हैं कल दुखी हो सकते हैं। आखिर मामला 'तोते' के कटखना होने का जो है। तोता यानी सीबीआई। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिंजरे का तोता कह कर नया मुहावरा गढ़ा था। उसी सीबीआई ने 'मानवता' को ताक पर रख कर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के एक दर्जन ठिकानों पर छापा मार दिया। वो भी उस दिन जब उनकी बेटी की शादी थी। अब इस घटना पर कहने वाले कह रहे कि ऐसा तो कोई दुश्मन के साथ भी नहीं करता... दुश्मन भी बेटी की शादी में सहयोग करता है...आदि, इत्यादि। आरोप लग रहे हैं कि सीबीआई में जरा सी भी मानवता नहीं है। पुलिस और पुलिस वालों से बनी इस जांच एजेंसी से मानवता की अपेक्षा भी क्यों? ये कोई आईपीएल मार्का भगोड़े ललित मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच वाला 'मानवता' का मामला थोड़े ही है। स्वराज ने मानवीयता के नाते एक बीमार महिला की मदद की तो विपक्ष ने संसद सिर पर उठा ली थी। अरे भाई, माना ललित मोदी की पत्नी है वह महिला पर इसमें मानवीयता भी तो थी। यही तर्क दिया था न लोकसभा में वक्तृत्व कला की माहिर सुषमा स्वराज ने। उनकी पार्टी, जिसकी सरकार है, उसने भी इसी तर्क के सहारे उनका हौसला बढ़ाया था कांग्रेस के आरोपों का मुकाबला करने में। उसी मानवता और मानवीयता की उम्मीद कांग्रेस वीरभद्र के मामले में कर रही थी और सीबीआई में इसका नितांत अभाव निकला।
भ्रष्टाचार के मामले में पड़े इस छापे पर कोई गुरेज नहीं...ऐतराज है तो उसकी टाइमिंग पर। शादी के मौके पर किसी के घर भी कोई ऐसे धमकता है क्या? सवाल इसी बात को लेकर है। यदि टाइमिंग सही होती तब भी छापे के खिलाफ आवाज उठती, लेकिन उसमें पब्लिक अपील नहीं होती। आखिर हम उस समाज में रहते हैं, जहां किसी बड़े अपराध का आरोपी भी चुनाव जीत जाए तो वह सीना फुला कर दावा करता है कि जनता की अदालत ने उसे बरी कर दिया है। अदालत में चल रहा मामला तो विपक्षी पार्टी का षड़यंत्र है। वीरभद्र के मामले में भी यही दावे हो रहे हैं। होते भी रहेंगे। आखिर जिस मामले में सीबीआई ने उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है वह पुराना है, साल 2009 से 2011का। जब वो केंद्र सरकार में मंत्री थे। इन आरोपों का सामना करते हुए उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने 2012 में हिमाचल का चुनाव लड़ा और जीत कर सरकार बनाई। उस चुनाव में भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा था। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप चल रहे थे। फैसला वीरभद्र के पक्ष में सुनाया था जनता ने। ऐसे ही जनता से अपने हक में फैसले की दुहाई के उदाहरण भरे पड़े हैं भारतीय सियासत में। अब वीरभद्र के खिलाफ सीबीआई की कार्यवाही से उनकी पार्टी की भवें तनना स्वाभाविक है। उस सीबीआई ने यह कार्यवाही की है, जिसे पिजरे का तोता बताया जाता है। यानी केद्र में जिस पार्टी की सरकार होगी सीबीआई उसके इशारे पर काम करेगी। यह जांच एजेंसी इस आरोप को पुष्ट करने के सिवा और कर भी क्या सकती, उस पर बंधन ही इतने ज्यादा हैं। वाकई पिंजरे में कैद।
सीबीआई की वीरभद्र सिंह पर की गई कार्यवाही से भारतीय राजनीति में वह रास्ता और मजबूत हो रहा है, जिस पर वर्तमान में बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें चल रही हैं। विरोधी दल के नेताओं पर शिकंजा कसना। मध्यप्रदेश में 12 साल से भी ज्यादा पुराने भर्ती मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी तक आरोपी हैं। ऐसे में एक वर्तमान मुख्यमंत्री पर सीबीआई का फंदा पड़ना आगे की राह दिखाता है। कांग्रेस नेता 'आरोप राग' आलाप रहे हैं कि सीबीआई की रेड बीजेपी के मुख्यमंत्रियों के घर क्यों नहीं पड़ रही। उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। आज स्थितियां भले ही अलग हों, लेकिन एक बात तो तय है कि एक मुख्यमंत्री पर छापेमारी से रिवेंज पॉलिटिक्स का एक नया अध्याय भारतीय राजनीति में खुल गया है। सरकार बदलते ही गड़े मुर्दे उखाड़ कर सीबीआई के तोते से फिर किसी को नहीं कटवाया जाएगा, इसकी गारंटी है क्या? होगी भी कैसे? डर की सियासत में मानवता की गुंजाइश हो भी तो कैसे? राजनीति में बदलापुर संस्कृति जो घर कर गयी है। चलो इसी बहाने राजनीति और सिस्टम की गंदगी छंटती है तो यही सही। कुछ तो सुधार होगा....कोई तो डरेगा...या शर्म खाएगा....












